ग़ज़ल
कुछ ख्वाब की कुछ हकीक़त की बातें
चलो अब करें हम मोहब्बत की बातें
सुनता है अब कौन आवाज़ दिल की
जो देखो वो करता है दौलत की बातें
शहर में मोहब्बत के दुश्मन बहोत हैं
सरे-बज़्म करते नहीं ख़त की बातें
मुश्किल थीं जिनको किताबो की राहें
उन्ही को सहल हैं सियासत की बातें
जिन्हें खुद पे अपने भरोसा नहीं है
वही लोग करते हैं किस्मत की बातें
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
very nice ghazal
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