रविवार, अप्रैल 25, 2010

गीत

नज़र से नज़र वो मिलाने लगे हैं
मुहब्बत का जादू चलाने लगे हैं

मुलाकात जिस दिन से अपनी हुई है
कई फूल शाखों पे आने लगे हैं

तेरा दर भी दैरो हरम से नहीं कम
अकीदत से हम सर झुकाने लगे हैं

है मिलने कि हसरत मिलने के लेकिन
बहाने कई वो बनाने लगे हैं

ज़मींदोज़ होना नहीं इनकी फितरत
इमारत में पत्थर पुराने लगे हैं

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

1 टिप्पणी:

  1. mulaaqaat jis din se apni huee hai
    kaee phool shaakhoN pe aane lage haiN

    waah-waa !!
    bahut hi nafees aur pyaara sher kahaa hai...
    gzl ke baaqi sher bhi
    mn ko bhaa gye . . .
    mubarakbaad .

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