गीत
नज़र से नज़र वो मिलाने लगे हैं
मुहब्बत का जादू चलाने लगे हैं
मुलाकात जिस दिन से अपनी हुई है
कई फूल शाखों पे आने लगे हैं
तेरा दर भी दैरो हरम से नहीं कम
अकीदत से हम सर झुकाने लगे हैं
है मिलने कि हसरत न मिलने के लेकिन
बहाने कई वो बनाने लगे हैं
ज़मींदोज़ होना नहीं इनकी फितरत
इमारत में पत्थर पुराने लगे हैं
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
mulaaqaat jis din se apni huee hai
जवाब देंहटाएंkaee phool shaakhoN pe aane lage haiN
waah-waa !!
bahut hi nafees aur pyaara sher kahaa hai...
gzl ke baaqi sher bhi
mn ko bhaa gye . . .
mubarakbaad .