गुरुवार, मई 27, 2010

Ghazal

ग़ज़ल
जफा भी खूबसूरत है, वफ़ा भी खूबसूरत है
मुक़दमा बेखुदी का है सज़ा भी खूबसूरत है

नहीं है तेरा चेहरा कम किसी शादाब गुंचे से
तेरी मखमूर आँखों में नशा भी खूबसूरत है

चलो आओ बिखेरें खुशबूएं अपनी वफ़ाओं की
बहारें हैं जवानी पर फिज़ा भी खूबसूरत है

तेरे हर काम को अंजाम देने का नतीजा सुन
किया भी खूबसूरत है, हुआ भी खूबसूरत है

तेरे माथे की बिंदिया तो लगे है चाँदनी जैसी
रची है जो हथेली पर हिना भी खूबसूरत है



विलास पंडित "मुसाफिर"

सोमवार, मई 24, 2010

Ghazal

ग़ज़ल
इन दिनों मेरे घर नहीं आती
कोई अच्छी खबर नहीं आती

शहर के सब हसीन चेहरों पर
ज़िन्दगी क्यूँ नज़र नहीं आती

वो सुनाता है दास्तां अपनी
आँख जबतक कि भर नहीं आती

सौंधी सौंधी है गाँव की मिट्टी
उसकी खुशबू शहर नहीं आती

प्यार से सिर्फ देखती है मुझे
मैं बुलाता हूँ पर नहीं आती

कब के मर जाते याद जो तेरी
हौले हौले से गर नहीं आती

वो "मुसाफ़िर" जहां पे रहता है
ज़िन्दगी भी उधर नहीं आती

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

रविवार, मई 16, 2010

ग़ज़ल
आप मिलने जहां नहीं आते
कोई मौसम वहां नहीं आते

इतना मसरूफ है शहर तेरा
लोग भी दरमियां नहीं आते

ज़िन्दगी है तो ग़म भी आयेंगे
हाय पतझड़ कहां नहीं आते

बज्मे रौशन कहीं भी हो कोई
जब हो हम बदगुमां नहीं आते

मेरे मुन्सिफ मुझे न कर मुजरिम
जब तलक कुछ बयां नहीं आते

इक सहारा नुमा सा हो मरहम
ज़ख्म के जब निशां नहीं आते

जो हैं मंज़िल की जुस्तजू वाले
वो "मुसाफ़िर" यहां नहीं आते

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

मंगलवार, मई 11, 2010

ग़ज़ल

हम अजल* को हयात मानेंगे
तुम जो कहदो वो बात मानेंगे

सिर्फ इक आपकी ख़ुशी के लिए
जीत को अपनी मात मानेंगे

सजके निकलेगा इक दीवाने का
जब जनाज़ा, बरात मानेंगे

नामुरादी के सिलसिले आख़िर
अब तो खुद को अलात* मानेंगे

ज़ब्ते गिर्या* का फ़न सिखा डाला
ज़िंदगी की बिसात * मानेंगे

आपकी एक हाँ को ऐ हमदम
सात जन्मों का साथ मानेंगे

उस "मुसाफ़िर" के ज़ख्म देखे हैं
दोस्तों को शनात * मानेंगे


शब्दों के अर्थ :- अजल = मौत, अलात =जिस पर रखके लोहा कूटा जाता है, ज़ब्ते गिर्या का फ़न = आंसू पीने की कला , बिसात= हिम्मत, शनात = शत्रु गण

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

रविवार, मई 09, 2010

ग़ज़ल
हर तरफ खुशियाँ बसी हों, कोई तनहा दिल न हो
प्यार से महरूम कोई, प्यार की महफ़िल न हो

यूँ तो इक ज़र्रा भी अपनी ज़िन्दगी काटे मगर
ज़िंदगी वो ज़िंदगी क्या जिसकी इक मंजिल न हो

उस समंदर की भटकती टूटती कश्ती हूँ मैं
जिस समंदर का कोई मीलों तलक साहिल न हो

ऐसी इक दुनिया का मैंने ख्वाब देखा है यहाँ
चाहतो का क़त्ल ना हो, और कोई कातिल न हो

उस "मुसाफ़िर" का फकत छोटा सा ही ये ख्वाब है
कोना -कोना बा-अदब हो, कोई भी ज़ाहिल न हो

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

गुरुवार, मई 06, 2010

ग़ज़ल

हंसाया गया हूँ , रुलाया गया हूँ
खिलौना मुनासिब बनाया गया हूँ

इंसान हूँ तो तारुफ़ है मेरा
अफसाना हूँ मैं सुनाया गया हूँ

गरजमंद था मुझसे हर शख्स ज्यादा
तेरे दर पे जब में खुदाया गया हूँ

लहरों मुहब्बत के बारे में सोचो
वही नाम हूँ जो मिटाया गया हूँ

रिश्तों के कांटे बिछे थे जहां पर
मैं उस राह पर ही सुलाया गया हूँ

मैं जिंदा था जब किसी ने पूछा
बाद मरने के आखिर सजाया गया हूँ


विलास पंडित "मुसाफ़िर"

सोमवार, मई 03, 2010

ग़ज़ल
चैन से आखिर सोया जाए
अब ख़्वाबों में खोया जाए

जीवन में तो ग़म ही ग़म हैं
आखिर कितना रोया जाए

नफरत के इस शहर में अब तो
बीज वफ़ा का बोया जाए

दुनिया का हर बोझ है हल्का
खुद का बोझ ढोया जाये

आंसू तो आंसू हैं , मय से
दामन आज भिगोया जाये

कांच की माला है ये दुनिया
मोती एक पिरोया जाये

एक 'मुसाफ़िर 'कहता है कि
अश्को से ग़म धोया जाये

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

शनिवार, मई 01, 2010

गीत
ये खुशियाँ, ये नग्में सारे, तेरे नाम
शादाँ मौसम चांद सितारे, तेरे नाम

हुक्म तुम्हारा हो जाये तो सारा कुछ
कर जायेंगे हम बंजारे, तेरे नाम

बीच भंवर में जीना हमको आता है
दरिया के फैयाज़ किनारे,तेरे नाम

मेरे बस में होता तो मैं कर देता
दुनिया के पुरकैफ नज़ारे, तेरे नाम

मैं कर बैठा तू समझा हैरत है
चाहत के कुछ खास इशारे,तेरे नाम

वस्ल के कुछ लम्हात जिन्हें हम कहते हैं
नाज़ुक-नाज़ुक, प्यारे-प्यारे, तेरे नाम

जब तुम हो तो और ज़रुरत क्या मुझको
जो कुछ भी है नाम हमारे ,तेरे नाम

विलास पंडित "मुसाफ़िर"