दूर मेरी ज़िन्दगी से सब अँधेरे हो गए
कुछ पराये दर्द थे, जो आज मेरे हो गए
दे गया उस पल खुदा, दुनिया हमें एहसास की
जब ख़ुशी के साथ गम के सात फेरे हो गए
भर गया वो पत्तियों से फिर हरा होने लगा
उस शजर पे पंछियों के जब बसेरे हो गए
घुट गया दम उस जगह रिश्तों का देखो तो ज़रा
हम से बँट कर आदमी जो तेरे मेरे हो गए
क्या कोई झोंका हवा का फिर दीवाना हो गया
आसमां पर किसलिए बादल घनेरे हो गए
डूबती शब है "मुसाफिर" से ही पूछेगी अभी
हम भला क्यूँकर जुदा इतने सवेरे हो गए
मुसाफिर