मंगलवार, फ़रवरी 15, 2011

ग़ज़ल

घर मेरे खुशियों को लाया कौन है
खुशबूएं  महकी हैं, आया कौन  है.

सादा पानी सारा अमरित हो गया 
आबशारों में नहाया  कौन  है.

सब्र लूटा, चैन छीना, नींद  भी
ये बता दे, ऐ खुदाया कौन है 

अपने ही मन की फ़क़त करता है वो 
जिस्म के भीतर समाया कौन है 

दिलके सब कमरे भी कम पड़ने लगे 
गठरियाँ ग़म की ये लाया कौन है

कितने दिल महफिल में बिखरे देखिये 
आज की महफ़िल में गाया कौन है 

हाथ में सूरज के है ये फैसला 
जिस्म है अब कौन, साया कौन है 

ना तो कोई ख्वाब है, ना है उमीद
रात भर जिसने जगाया कौन है 

तै नहीं कर पाया अब तक दोस्तों 
कौन है अपना, पराया कौन है 

आज के इस दौर का तो वो नहीं 
जिसने हर वादा निभाया कौन है

सोचता हूँ वो "मुसाफ़िर" तो नहीं 
हर कदम पर आज़माया, कौन है 

विलास पंडित "मुसाफ़िर"
[c] copyright by : Musafir 

सोमवार, फ़रवरी 07, 2011

प्यार...! ना...अब नहीं

इस ज़माने में.........यही रीत बना ली जाये 
दिल में अब इश्क़ की बुनियाद न डाली  जाये


शहर  में  रोज़ के हंगामे  हुआ करते हैं 
क्यूँ न बस्ती किसी  जंगल में बसाली  जाये 


कह रहे हैं यही तूफां  के बदलते तेवर 
अब कोई  नाव  समंदर में न डाली जाये 


कत्ल उसने ही किया है वोही कातिल है मगर 
क्यूँ ये बात ज़माने से छुपा ली  जाये 


मोहतरम  आप मुसाफ़िर हैं  "मुसाफ़िर" मैं  भी 
क्यूँ   न मिल- जुल  के कोई राह  निकली जाये 





विलास पंडित "मुसाफ़िर"  

मंगलवार, फ़रवरी 01, 2011

ग़ज़ल

जीवन है पल पल की उलझन, किस किस पल की बात करें 
इन लम्हों को भूल  के हम तुम गीत - ग़ज़ल की बात करें 

रोज़ ही पीना, रोज़ पिलाना . रोज़ ग़मों से टकराना 
इक दिन मय को भूल के आओ, गंगा जल की बात करें 

सौ बरसों के इस जीने से हासिल क्या हो पायेगा 
जिसने दिल को खुशियाँ दी हों, उस इक पल की बात करें 

क्या पाया है भीड़ में खोकर,  क्या पाया तन्हाई में 
आओ यारों इन रस्मों के फेर-बदल की बात करें 

आज वफ़ा की राह "मुसाफ़िर" धुंधली धुंधली लगती है 
कोहरा जिसने  बरसाया है, उस  बादल की बात करें 

विलास पंडित " मुसाफिर"
(C) Copyright By : Musafir