शुक्रवार, अगस्त 27, 2010

Ghazal

पेहलू में ले के ग़म कोई सोया न जायेगा
अब बोझ हर सवाल का ढोया न जायेगा

महफ़िल से उठके चल दिए दिल टूटने के बाद
हमसे तुम्हारे सामने रोया न जायेगा

अश्कों से तुम खुतूत को धोया करो मगर
लिक्खा हुआ नसीब का धोया न जायेगा

तूफ़ान-ए-ग़म में आज हरेक शख्स असीर
नफ़रत का बीज अब कहीं बोया न जायेगा

लेकर ग़मों की धूल को आँखों में,इस तरह
हमसे तेरे ख़याल में खोया न जायेगा

कहती है आज मौत "मुसाफ़िर" तेरे बगैर
इस शाम -ए-बेचराग में सोया न जायेगा

विलास पंडित "मुसाफ़िर "
(c) copyright by :Musafir

रविवार, अगस्त 22, 2010

Geetnuma Ghazal

बेपरवाह- नशीली जुल्फें

भीगा चेहरा,गीली जुल्फें



हाल बयां करती है दिल का

छूके जिस्म नुकीली जुल्फें



अक्स पे इक बादल का पेहरा

छोड़ी जब जब ढीली जुल्फें



सावन की बूंदों में भीगी

कितनी खूब रसीली जुल्फें


हुस्न छुपाना सीख गई हैं

धूप में ये चमकीली जुल्फें



साजन से तक़रार का आलम

हों जब जब पथरीली जुल्फें



यार मुसफ़िर शाइर क्या है

चेहरा जार, मटीली जुल्फें



विलास पंडित " मुसाफिर"

(c)Copyright By : Musafir

बेपरवाह- नशीली जुल्फें

भीगा चेहरा,गीली जुल्फें

हाल बयां करती है दिल का

छूके जिस्म नुकीली जुल्फें

अक्स पे इक बादल का पेहरा

छोड़ी जब जब ढीली जुल्फें

सावन की बूंदों में भीगी

कितनी खूब रसीली जुल्फें

हुस्न छुपाना सीख गई हैं

धूप में ये चमकीली जुल्फें

साजन से तक़रार का आलम

हों जब जब पथरीली जुल्फें

यार मुसफ़िर शाइर क्या है

चेहरा जार, मटीली जुल्फें

विलास पंडित " मुसाफिर"

(c)Copyright By : Musafir


गुरुवार, अगस्त 12, 2010

Ghazal


इस दौर के आख़िर क्या कहने, इस दौर में चाहत कुछ भी नहीं
दौलत की नुमाइश है हरसू, इंसान की कीमत कुछ भी नहीं

ये देख लिया, ये जान लिया, अब सच क्या है पहचान लिया
इस दौर में रिश्तो के मानी, एहसास-ओ- मुहब्बत कुछ भी नहीं

वो तुम ही थे, जो कहते थे, ये साथ कभी ना छूटेगा
तुम गैर की डोली में बैठे, ये तल्ख़ हकीकत कुछ भी नहीं

कुछ तेरे ख़त, कुछ तस्वीरें,कुछ ग़ज़लें और कुछ तेरा ग़म
यादें ही सम्हाले रक्खी हैं, और घर में सलामत कुछ भी नहीं

सिक्कों की खनक में जादू है, दौलत में अजब ही ख़ुश्बू है
इस प्यार की कीमत कुछ भी नहीं,जज़्बात की कीमत कुछ भी नहीं

विलास पंडित "मुसाफ़िर"
(c) copyright : Musafir