बेपरवाह- नशीली जुल्फें
भीगा चेहरा,गीली जुल्फें
हाल बयां करती है दिल का
छूके जिस्म नुकीली जुल्फें
अक्स पे इक बादल का पेहरा
छोड़ी जब जब ढीली जुल्फें
सावन की बूंदों में भीगी
कितनी खूब रसीली जुल्फें
हुस्न छुपाना सीख गई हैं
धूप में ये चमकीली जुल्फें
साजन से तक़रार का आलम
हों जब जब पथरीली जुल्फें
यार मुसफ़िर शाइर क्या है
चेहरा जार, मटीली जुल्फें
विलास पंडित " मुसाफिर"
(c)Copyright By : Musafir
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दोस्तों
जवाब देंहटाएंआप जैसे कद्रदानो की मेहर है
विलास पंडित