मंगलवार, दिसंबर 28, 2010

ग़ज़ल

गर्दिशों में मुस्कुराना सीखिए
दुश्मनों से दिल मिलाना सीखिए

वरना ये तन्हाई तो डस जायेगी
घर किसी के आना जाना सीखिए

झोलियाँ खुशियों से भरना आ गईं
बोझ ग़म का भी उठाना सीखिए

है बहोत आसां ज़माने का चलन
ख़ुद सिखाता है ज़माना सीखिए

वस्ल क्या है, प्यार क्या सिखलाऊंगा
आप थोड़ा पास आना सीखिए

होगी दुनिया आपके कदमों तले
बस ज़रा ये सर झुकाना सीखिए

विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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