सोमवार, अक्तूबर 25, 2010

Ghazal

यूँ तो दुनिया में क्या नहीं होता

दर्द, दिल से जुदा नहीं होता

उसको महबूब मैं कहूँ, क्यूँकर

उसका वादा - वफ़ा नहीं होता

दिल तो टूटा है इस जगह कोई

साज़ यूँ बेसदा नहीं होता

मेरा शायर मुझे बुलाता है

जब कोई सिलसिला नहीं होता

रोज़ की वो ही दास्ताँ आख़िर

क्यूँ कहीं कुछ नया नहीं होता

मान एहसान तू मेरा वरना

नज़रे बद से बचा नहीं होता

जिसको दुनिया सुकून कहती है

दिल को हासिल ज़रा नहीं होता

मौत गर वक़्त पर बुला लेती

ज़िन्दगी से गिला नहीं होता

बदगुमानी में ही गुज़र जाती

काश पर्दा उठा नहीं होता

हम "मुसाफ़िर" को कह गए फाईज़

फ़र्ज़ ऐसे अता नहीं होता

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

(c) Copyright By : Musafir

गुरुवार, अक्तूबर 21, 2010

ग़ज़ल

दिल की हालत न पूछिए साहब

ये हक़ीक़त न पूछिए साहब


अश्क आँखों में आ ही जायेंगे

ग़म की लज्ज़त न पूछिए साहब


जिसने बर्बाद कर दिया आख़िर

वो ही आदत न पूछिए साहब


लूटने वाले कम नहीं लेकिन

दिल की दौलत न पूछिए साहब


खामख्वाह आप टूट जाओगे

राज़-ए-उल्फत न पूछिए साहब


ज़र्रा-ज़र्रा वजूद रखता है

उसकी कुदरत न पूछिए साहब


विलास पंडित "मुसाफिर"

(c) Copyright By :Musafir

बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

Ghazal

बेपरवाह- नशीली जुल्फें

भीगा चेहरा,गीली जुल्फें


हाल बयां करती है दिल का

छूके जिस्म नुकीली जुल्फें


अक्स पे इक बादल का पेहरा

छोड़ी जब जब ढीली जुल्फें


सावन की बूंदों में भीगी

कितनी खूब रसीली जुल्फें


हुस्न छुपाना सीख गई हैं

धूप में ये चमकीली जुल्फें


साजन से तक़रार का आलम

हों जब जब पथरीली जुल्फें


यार मुसफ़िर शाइर क्या है

चेहरा जार, मटीली जुल्फें


विलास पंडित " मुसाफिर"

(c)Copyright By : Musafir

ग़ज़ल

ग़ज़ल
सीदा-सादा आदमी था, पर दीवाना हो गया
इक क़यामत हाय तेरा मुस्कुराना हो गया

मय तेरी आगोश में आना तो आसां था मगर
रफ्ता -रफ्ता ज़िन्दगी से दूर जाना हो गया

बात थी इतनी कि बाहम प्यार कर बैठे थे हम
इक ज़रा सी बात का लेकिन फ़साना हो गया

कैसे मुमकिन फ़ैसला हम अपने हक़ में पायेंगे
आज मुंसिफ़ - कातिलों का दोस्ताना हो गया

इक तरफ मतलब-परस्ती, इक तरफ झूटी वफ़ा
जो न चाहा था कभी अब वो ज़माना हो गया

विलास पंडित "मुसाफिर"
(c) Copyright By : Musafir