बेपरवाह- नशीली जुल्फें
भीगा चेहरा,गीली जुल्फें
हाल बयां करती है दिल का
छूके जिस्म नुकीली जुल्फें
अक्स पे इक बादल का पेहरा
छोड़ी जब जब ढीली जुल्फें
सावन की बूंदों में भीगी
कितनी खूब रसीली जुल्फें
हुस्न छुपाना सीख गई हैं
धूप में ये चमकीली जुल्फें
साजन से तक़रार का आलम
हों जब जब पथरीली जुल्फें
यार मुसफ़िर शाइर क्या है
चेहरा जार, मटीली जुल्फें
विलास पंडित " मुसाफिर"
(c)Copyright By : Musafir
एक
जवाब देंहटाएंबहुत ही नशीली,, रसीली,, रंगीली ग़ज़ल ...
वाह !
बेपरवाह- नशीली जुल्फें
भीगा चेहरा,गीली जुल्फें
ये 'भीगा चेहरा' और 'गीली जुल्फें' में
आपसी मेलजोल बहुत ही काम कर रहा है जनाब ...
और
पथरीली जुल्फें.....
आपका कोई अलग-सा नज़रिया रहा होगा !?!
हर क़ाफिये को बड़ी खूबसूरती से निभाया गया है
मुबारकबाद .