दिल की हालत न पूछिए साहब
ये हक़ीक़त न पूछिए साहब
अश्क आँखों में आ ही जायेंगे
ग़म की लज्ज़त न पूछिए साहब
जिसने बर्बाद कर दिया आख़िर
वो ही आदत न पूछिए साहब
लूटने वाले कम नहीं लेकिन
दिल की दौलत न पूछिए साहब
खामख्वाह आप टूट जाओगे
राज़-ए-उल्फत न पूछिए साहब
ज़र्रा-ज़र्रा वजूद रखता है
उसकी कुदरत न पूछिए साहब
विलास पंडित "मुसाफिर"
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लूटने वाले कम नहीं लेकिन
जवाब देंहटाएंदिल की दौलत न पूछिए साहब
यही तो सबसे बड़ी चीज़ है, दिल की दौलत। लूट कौन कितना लूट सकता है। बहुत अच्छी ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
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