बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

ग़ज़ल

ग़ज़ल
सीदा-सादा आदमी था, पर दीवाना हो गया
इक क़यामत हाय तेरा मुस्कुराना हो गया

मय तेरी आगोश में आना तो आसां था मगर
रफ्ता -रफ्ता ज़िन्दगी से दूर जाना हो गया

बात थी इतनी कि बाहम प्यार कर बैठे थे हम
इक ज़रा सी बात का लेकिन फ़साना हो गया

कैसे मुमकिन फ़ैसला हम अपने हक़ में पायेंगे
आज मुंसिफ़ - कातिलों का दोस्ताना हो गया

इक तरफ मतलब-परस्ती, इक तरफ झूटी वफ़ा
जो न चाहा था कभी अब वो ज़माना हो गया

विलास पंडित "मुसाफिर"
(c) Copyright By : Musafir

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