शनिवार, जून 19, 2010

फूल से जब आप नश्तर हो गए
आदमी थे हम भी पत्थर हो गए

प्यार करके कुछ तो हासिल हो गया
आदमी थे हम भी शायर हो गए

हम मुक़म्मल क्या बताएं आपको
आपके सीने से लग कर हो गए

उनसे मिलने में हिचक होती है अब
वो हमारे कद से ऊपर हो गए

लोग इतने तेज़ जाते हैं कहाँ ?
हम तो आख़िर चूर थककर हो गए

मैं भला ग़ैरों को आख़िर क्या कहूँ
आजकल अपनों से बेहतर हो गए

नाम ही ने कर दिया रुसवा हमें
हम "मुसाफ़िर" थे सो बेघर हो गए

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

(c) copyright by : Musafir

शनिवार, जून 12, 2010

ग़ज़ल

अपनी तो क़िस्मत रूठी है, झूटी है तकदीर मियां
वक़्त ने उस पर पैरों में भी बाँधी है ज़ंजीर मियां

तुम कहते हो जाकर देखो,शायद कुछ पा जाओगे
छोड़ो, रहने भी दो जाओ, बातों की तनवीर* मियां

उतने के उतने ही पाए ग़म के सागर में मोती
पैर फ़क़ीरों के भी चूमे,देख लिए सब पीर मियां

लोगों के घर की रौनक हैं दिलबर,दौलत,रंगों-फूल
अपने तो घर की रौनक है अपनी ही तस्वीर मियां

रोज़ ही ख्वाबों में आता था, उजड़ा सा वीरान शजर
इक दिन तन्हाई में समझे, ख्वाबों की ताबीर मियां

लाख "मुसाफ़िर"ग़ज़लें कहलो लेकिन इतना ध्यान रहे
एक ही थे "ग़ालिब' दुनिया में एक ही थे वो "मीर" मियां

शब्दार्थ = तनवीर =रौशनी

विलास पंडित "मुसाफ़िर"
(c) copyright by :Musafir

बुधवार, जून 02, 2010

ग़ज़ल
एक भी कतरा न छोड़ा कीजिये
दिल मेरा जब भी निचोड़ा कीजिये

आप ही के नाम से पहचान हो
नाम मेरा साथ जोड़ा कीजिये

सीधे सीधे चलके क्या हासिल हुआ
ज़िंदगी मुड़ती है, मोड़ा कीजिये

सिर्फ दुनिया पर ही सारी तोहमतें
खुद को भी आख़िर झंझोड़ा कीजिये

लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
आप भी एहसान थोड़ा कीजिये

आपको ये हक़ मोहब्बत में दिया
दिल है मेरा खूब तोड़ा कीजिये

मैं "मसाफिर" हूँ मुझे चलना ही है
बा-अदब छाले न फोड़ा कीजिये

विलास पंडित "मुसाफिर"