शनिवार, जून 12, 2010

ग़ज़ल

अपनी तो क़िस्मत रूठी है, झूटी है तकदीर मियां
वक़्त ने उस पर पैरों में भी बाँधी है ज़ंजीर मियां

तुम कहते हो जाकर देखो,शायद कुछ पा जाओगे
छोड़ो, रहने भी दो जाओ, बातों की तनवीर* मियां

उतने के उतने ही पाए ग़म के सागर में मोती
पैर फ़क़ीरों के भी चूमे,देख लिए सब पीर मियां

लोगों के घर की रौनक हैं दिलबर,दौलत,रंगों-फूल
अपने तो घर की रौनक है अपनी ही तस्वीर मियां

रोज़ ही ख्वाबों में आता था, उजड़ा सा वीरान शजर
इक दिन तन्हाई में समझे, ख्वाबों की ताबीर मियां

लाख "मुसाफ़िर"ग़ज़लें कहलो लेकिन इतना ध्यान रहे
एक ही थे "ग़ालिब' दुनिया में एक ही थे वो "मीर" मियां

शब्दार्थ = तनवीर =रौशनी

विलास पंडित "मुसाफ़िर"
(c) copyright by :Musafir

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें