ग़ज़ल
एक भी कतरा न छोड़ा कीजिये
दिल मेरा जब भी निचोड़ा कीजिये
आप ही के नाम से पहचान हो
नाम मेरा साथ जोड़ा कीजिये
सीधे सीधे चलके क्या हासिल हुआ
ज़िंदगी मुड़ती है, मोड़ा कीजिये
सिर्फ दुनिया पर ही सारी तोहमतें
खुद को भी आख़िर झंझोड़ा कीजिये
लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
आप भी एहसान थोड़ा कीजिये
आपको ये हक़ मोहब्बत में दिया
दिल है मेरा खूब तोड़ा कीजिये
मैं "मसाफिर" हूँ मुझे चलना ही है
बा-अदब छाले न फोड़ा कीजिये
विलास पंडित "मुसाफिर"
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