ग़ज़ल
जफा भी खूबसूरत है, वफ़ा भी खूबसूरत है
मुक़दमा बेखुदी का है सज़ा भी खूबसूरत है
नहीं है तेरा चेहरा कम किसी शादाब गुंचे से
तेरी मखमूर आँखों में नशा भी खूबसूरत है
चलो आओ बिखेरें खुशबूएं अपनी वफ़ाओं की
बहारें हैं जवानी पर फिज़ा भी खूबसूरत है
तेरे हर काम को अंजाम देने का नतीजा सुन
किया भी खूबसूरत है, हुआ भी खूबसूरत है
तेरे माथे की बिंदिया तो लगे है चाँदनी जैसी
रची है जो हथेली पर हिना भी खूबसूरत है
विलास पंडित "मुसाफिर"
बेहतरीन ग़ज़ल।
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