सोमवार, मई 24, 2010

Ghazal

ग़ज़ल
इन दिनों मेरे घर नहीं आती
कोई अच्छी खबर नहीं आती

शहर के सब हसीन चेहरों पर
ज़िन्दगी क्यूँ नज़र नहीं आती

वो सुनाता है दास्तां अपनी
आँख जबतक कि भर नहीं आती

सौंधी सौंधी है गाँव की मिट्टी
उसकी खुशबू शहर नहीं आती

प्यार से सिर्फ देखती है मुझे
मैं बुलाता हूँ पर नहीं आती

कब के मर जाते याद जो तेरी
हौले हौले से गर नहीं आती

वो "मुसाफ़िर" जहां पे रहता है
ज़िन्दगी भी उधर नहीं आती

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

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