शुक्रवार, अगस्त 27, 2010

Ghazal

पेहलू में ले के ग़म कोई सोया न जायेगा
अब बोझ हर सवाल का ढोया न जायेगा

महफ़िल से उठके चल दिए दिल टूटने के बाद
हमसे तुम्हारे सामने रोया न जायेगा

अश्कों से तुम खुतूत को धोया करो मगर
लिक्खा हुआ नसीब का धोया न जायेगा

तूफ़ान-ए-ग़म में आज हरेक शख्स असीर
नफ़रत का बीज अब कहीं बोया न जायेगा

लेकर ग़मों की धूल को आँखों में,इस तरह
हमसे तेरे ख़याल में खोया न जायेगा

कहती है आज मौत "मुसाफ़िर" तेरे बगैर
इस शाम -ए-बेचराग में सोया न जायेगा

विलास पंडित "मुसाफ़िर "
(c) copyright by :Musafir

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