इस ज़माने में.........यही रीत बना ली जाये
दिल में अब इश्क़ की बुनियाद न डाली जाये
शहर में रोज़ के हंगामे हुआ करते हैं
क्यूँ न बस्ती किसी जंगल में बसाली जाये
कह रहे हैं यही तूफां के बदलते तेवर
अब कोई नाव समंदर में न डाली जाये
कत्ल उसने ही किया है वोही कातिल है मगर
क्यूँ ये बात ज़माने से छुपा ली जाये
मोहतरम आप मुसाफ़िर हैं "मुसाफ़िर" मैं भी
क्यूँ न मिल- जुल के कोई राह निकली जाये
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
दिल में अब इश्क़ की बुनियाद न डाली जाये
शहर में रोज़ के हंगामे हुआ करते हैं
क्यूँ न बस्ती किसी जंगल में बसाली जाये
कह रहे हैं यही तूफां के बदलते तेवर
अब कोई नाव समंदर में न डाली जाये
कत्ल उसने ही किया है वोही कातिल है मगर
क्यूँ ये बात ज़माने से छुपा ली जाये
मोहतरम आप मुसाफ़िर हैं "मुसाफ़िर" मैं भी
क्यूँ न मिल- जुल के कोई राह निकली जाये
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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