ग़ज़ल
समंदर में तूफां के आसार होते
यारो अगर हम गुनाहगार होते
ख़्वाबों को तरजीह देते भला क्यूँ
हर शब् तुम्हारे जो दीदार होते
तुम्हारी सदाओं ने रोका है वर्ना
हम भी समंदर के उस पार होते
ये बाज़ार कीमत नहीं आंक पाया
बिक जाते हम जो खरीदार होते
मेरी मुफलिसी ने ये मुंह सिल दिया है
वगरना ज़माने से दो- चार होते
पत्थर पुरानी इमारत के हम थे
न तारीख बनतेन मिसमार होते
सुखन का ये फ़न तो विरासत है मेरी
"मुसाफ़िर"न होते तो "गुलज़ार" होते
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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