शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

ग़ज़ल
समंदर में तूफां के आसार होते
यारो अगर हम गुनाहगार होते

ख़्वाबों को तरजीह देते भला क्यूँ
हर शब् तुम्हारे जो दीदार होते

तुम्हारी सदाओं ने रोका है वर्ना
हम भी समंदर के उस पार होते

ये बाज़ार कीमत नहीं आंक पाया
बिक जाते हम जो खरीदार होते

मेरी मुफलिसी ने ये मुंह सिल दिया है
वगरना ज़माने से दो- चार होते

पत्थर पुरानी इमारत के हम थे
तारीख बनते मिसमार होते

सुखन का ये फ़न तो विरासत है मेरी
"मुसाफ़िर" होते तो "गुलज़ार" होते

विलास पंडित "मुसाफ़िर"

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