ग़ज़ल
तितलियाँ जब जब चमन में शोख फूलों से मिली
ये नहीं हैरत मिली क्यूँ, पर उसूलों से मिली ।
आग ही ने आग को आखिर बुझाया किस तरह
ये करिश्माई हकीकत घर के चूलों से मिली
वक़्त से बढ़कर कोई उस्त्ताद आखिर है कहाँ
सबको दुनिया में नसीहत अपनी भूलों से मिली
वो जवानी के हसीं लम्हे ज़हन में आ गए
जब तुम्हारी खुशबूएं पीपल के झूलों से मिली
हर कदम ही कीमती है फूंक कर रक्खा करो
दश्त में ये सीख मुझको कुछ बबूलों से मिली
विलास पंडित " मुसाफ़िर"
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