ग़ज़ल
मुझे इंसान कायम रख, मेरा ईमान कायम रख
खुदा मुझ पर तू अपना बस येही एहसान कायम रख
मेरी खुशियों पे हक तेरा ,मेरा हर गम भी तेरा है
मैं तेरी ही बदौलत हूँ , मेरी ये शान कायम रख
नहीं मेरा कोई मज़हब, ना कोई ज़ात है मेरी
तेरी तामीर हूँ मौला , मुझे इंसान कायम रख
बहोत से लोग दुनिया में बड़ा ही नाम करते हैं
गुज़ारिश है मेरी इतनी मेरी पहचान कायम रख
तेरा दीदार होता है, इन्ही बच्चों की सूरत में
तू इन बच्चों के चेहरों पर फकत मुस्कान कायम रख
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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