दो सूफियाना गीत
अल्ला -अल्ला, करते करते हम दीवाने हो गए
कल तलक कुछ भी न थे वो सब सयाने हो गए
हम तो तेरे नाम की माला जपने में मशगूल रहे
टूट गई वो माला मोती दाने- दाने हो गए
मेरी किस्मत में खिज़ां भी और खालीपन रहा
साथ थे उनके जो मौसम वो सुहाने हो गए
राज़-ए-उल्फत क्या बताऊँ कुछ बताने को नहीं
ख़त सभी महफूज़ हैं लेकिन अब पुराने हो गए
आये थे हम इस दुनिया में अपना एक वजूद लिए
रिश्तों में तख्सीम हुए और खाने-खाने हो गए
[२]
बस्ती बस्ती प्यारा है
जोगी का एकतारा है
जीत के गुर सिखलाये सबको
जिसने सबकुछ हारा है
बांटे आखिर सब के गम
वो कैसा बंजारा है
उसका हर इक बोल तो जैसे
मीठे जल की धारा है
सबको ही इम्लाक करे
खुद लेकिन बेचारा है
जोगी जोगी कहते सब
वो तो आलम आरा है
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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