ग़ज़ल
हाथ जब इक दोस्ती का मिल गया
एक रस्ता ज़िन्दगी का मिल गया
जिस नज़र से आपने देखा मुझे
कुछ मज़ा तो आशिकी का मिल गया
हम किसी के पास जाते फिर भला क्यूँ
दर खुला जब आपही का मिल गया
काश ये अफवाह होती सच खबर
दिल शहर में हर किसी का मिल गया
बागबां महबूब के ख्वाबों में था
रस भी भंवरे को कली का मिल गया
अब मसीहा नाम से मशहूर है
फल उसे दरियादिली का मिल गया
वो मुसाफ़िर खुश है आखिर इन दिनों
अब पता उसको उसी का मिल गया
विलास पंडित "मुसाफ़िर "
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