एक बार मुझे मिल जाती तुम.........
मेरी ज़िन्दगी का हर ख्वाब मुक़म्मल हो जाता ...
फिर न कोई गीत अधूरा होता
न होता अल्फ़ाज़ का सरमाया ख़त्म
रोज़ खिलते नए-नए गुंचे
हर वक़्त फ़िज़ाओं में गूंजते नग़में.......
एक छोटा सा आशियाँ होता.......
जिसकी हर खिड़की
बहारों-पहाड़ों और आबशारों के मंज़र दिखाती..........
हमको हर लम्हा लुभाती रहती....
तुम मेरा साथ देती अगर ........?
तो यकीनन हमारा मिलन
मान लेता आज न होता ....लेकिन
ये मिलन कल हो जाता ............
एक बार मुझे मिल जाती तुम.......
ज़िन्दगी का हर ख्वाब मुक़म्मल हो जाता....
विलास पंडित "मुसाफिर"
सुंदर एहसास से पिरोयी नज़्म।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत एहसास
जवाब देंहटाएंएक बार मुझे मिल जाती तुम.......
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी का हर ख्वाब मुक़म्मल हो जाता
यही तो रोना है कि जिन्दगी का हर ख्वाब मुकम्मल नही हो पाता। बेहतरीन नज्म।
umeede kitni khoobsurat hoti hain na. sunder abhivyakti.
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