ज़िन्दगी इक राह दे जंगल न दे
धूप दे कुछ गुनगुनी बादल न दे
या तो मेरा आज ही कर फ़ैसला
या मुझे इस ज़िन्दगी का कल न दे
जिस्म पर चाहे तू जितने घाव कर
रूह को मेरी चुभन पल-पल न दे
चुभ चुके हैं तीर लफ़्ज़ों के बहोत
अब रज़ाई नर्म दे कम्बल न दे
फंस के जिसमें ज़िंदगी बंट जाएगी
खामखां रिश्तो का वो दल-दल न दे
या तो रोने से उसे तू रोक ले
या हसीं आँखों को अब काजल न दे
मुसाफ़िर
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