एक बार मुझे मिल जाती तुम.....
मेरी ज़िन्दगी का हर ख़्वाब मुक़म्मल हो जाता .....
मैं बसाता सपनों की दुनिया
जिस दुनिया में होती तो,
सिर्फ़ मोहब्बत होती.....
न होती झूटी रस्में
न थोपी हुई रिवायत होती......
हर तरफ महकती प्यार की खुश्बू
उन खुशबूओं में डूबकर हम ....
दो जिस्म इक जान हो जाते
जी भर के प्यार करते ...और
बाहों में सिमट कर सो जाते....
ज़िन्दगी का हरेक मस'अला
ख़ुद-ब-ख़ुद हल हो जाता
एक बार मुझे मिल जाती तुम
ज़िन्दगी का हर ख़्वाब मुक़म्मल हो जाता................
विलास पंडित "मुसाफिर"
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