क्या है मेरे नसीब में सचमुच ख़बर नहीं
जब है तेरा वजूद तो मुझको भी डर नहीं
तूफां के डर से कांपता होगा ये समंदर
दरिया पे ऐसे खौफ़ का कोई असर नहीं
अपना बना के आपसे करता रहा फरेब
क्यूँ कर हुज़ूर आपकी उस पर नज़र नहीं
खाना-बदोश हूँ, मेरा अंदाज़ है अलग
रहता हूँ जिस जगह वहां दीवारों-दर नहीं
खाता है खौफ़ आस्मां जिसकी उड़ान से
देखो वो इक परिंदा अब शाख पर नहीं
बेवजह उसकी आप भी क्यूं जुस्तजू में हैं
वो तो है इक " मुसाफ़िर"वो हमसफ़र नहीं
विलास पंडित " मुसाफ़िर'
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