जैसे ख्वाबों को मेरे ज़मीं मिल गई..
उसकी हर इक अदा में थी जादूगरी
वो तो थी.... खूबसूरत सी कोई परी
सादगी उसकी बातों की पहचान थी
वो ज़माने की बातों से नादान थी....
आँखों-आँखों में उससे मुहब्बत हुई
ऐ खुदा देख तो क्या कयामत हुई
सारा माहौल फिर तो सुखनवर हुआ
राज़ बाहम जो था वो उजागर हुआ
फूल खिलने लगे, हम भी मिलने लगे
और मुहब्बत के दुश्मन भी जलने लगे
हमने छोड़ी नहीं राहे उल्फ़त मगर
की, मुहब्बत में, चाहत में, हमने बसर
ज़िन्दगी कट गई दरमियाँ प्यार में
ज़िन्दगी कट गई दरमियाँ प्यार में
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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इस रचना पर तो बस एक ही शब्द निकल रहे हैं .. वाह!! बेहतरीन, लाजवाब!! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
विलास भाई इसे ग़ज़ल कहें या नज़्म, पर ये है बहुत ही शानदार, बधाई स्वीकार करें बन्धुवर|
जवाब देंहटाएंnavincchaturvedi@gmail.com
वाह वाह वाह वाह …………क्या बात है……………अति सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंखुबसुरत नज्म है आपकी। माशाअल्लाह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
जवाब देंहटाएंभावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
वाह क्या बात है, बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंआप सभी का तहे दिल से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंविलास पंडित