सोमवार, जनवरी 03, 2011

गीत

प्यार है, और वस्ल का आलम भी है
इन दिनों बरसात का मौसम भी है

वक़्त ऐसा फिर कहाँ मिल पायेगा
रौशनी इस शाम की मद्धम भी है

आबशारों की सदा को क्या कहूँ
प्यार है तो प्यार की सरगम भी है

दोस्त हम पहले पहल थे आजकल
सिलसिला इक प्यार का बाहम भी है

मेरे नगमें और मेरी आवाज़ क्यूँ
साथ पायल की तेरे छम-छम भी है

एक दूजे के चलो हो जायें हम
प्यार का इक नाम तो संगम भी है

क्या कहा उसको बताओ ना मुझे
वो मुसाफ़िर खुश भी है पुर ग़म भी है


विलास पंडित "मुसाफ़िर"
(c)
copyright by : Musafir

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