ghazal
ग़ज़ल
जिसका अपना कोई ज़मीर नहीं
मेरी नज़रों मे वो अमीर नहीं.
जिसकी जानिब हों ग़म ज़माने के
वो तो मुफलिस नहीं, फ़कीर नहीं
तल्ख़ बातें ज़ुबां से मत कीजे
बख्श दें रूह ये वो तीर नहीं
कोई खुशियों में, कोई है ग़म में
कौन ऐसा है जो असीर* नहीं
इक "मुसाफ़िर" हूँ अपनी मंज़िल का
मै तो ग़ालिब नहीं मैं मीर नहीं
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
(c) copyright by :Musafir
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