शनिवार, सितंबर 03, 2011

ग़ज़ल ...

उलझनों को और मत उलझाइये 
ज़िन्दगी को प्यार से समझाइये 

दोस्तों की बेवफ़ाई का सबब 
आप अपने दिल को मत बतलाइये 

शोखियां, बदमाशियां, सरगोशियाँ 
उम्र है ये सब तो करते जाइये 

हम दीवाने हैं या पागल हैं ज़रा 
ये पहेली आप ही सुलझाइये 

क्यूं हुए बेरंग भी, बेनूर भी 
आप फूलों को ज़रा महकाइये 

दिल तो क्या घर भी तुम्हारे नाम हैं 
आइये बेख़ौफ़ होकर आइये 

विलास पंडित 
"मुसाफ़िर'

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