खिल गया है, राज़े-दिल खोला तो है
फ़ूल ने तितली से कुछ बोला तो है
तुम हवा बनकर उसे सुलगा गए
हाँ मेरे सीने में इक शोला तो है
काश अब ये सिलसिला आगे बढे
उसने हमको इक नज़र तोला तो है
यूँ अचानक तल्खियाँ रिश्तों में क्यूं
अब किसी ने फिर ज़हर घोला तो है
लोग तो मेहदूद हैं, बस ख़ुद तलक
कुछ वो दुनिया के लिए बोला तो है
सब समझते हैं खिलौना बस उसे
वो "मुसाफ़िर" देखिये भोला तो है
मुसाफिर
यूँ अचानक तल्खियाँ रिश्तों में क्यूं
जवाब देंहटाएंअब किसी ने फिर ज़हर घोला तो है
लोग तो मेहदूद हैं, बस ख़ुद तलक
कुछ वो दुनिया के लिए बोला तो है
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 07-07- 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- प्रतीक्षारत नयनो में आशा अथाह है -
खिल गया है, राज़े-दिल खोला तो है
जवाब देंहटाएंफ़ूल ने तितली से कुछ बोला तो है
तुम हवा बनकर उसे सुलगा गए
हाँ मेरे सीने में इक शोला तो है
बहुत सुन्दर गज़ल्।
बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंयूँ अचानक तल्खियाँ रिश्तों में क्यूं
जवाब देंहटाएंअब किसी ने फिर ज़हर घोला तो है
लोग तो मेहदूद हैं, बस ख़ुद तलक
कुछ वो दुनिया के लिए बोला तो है ..
बेहतरीन गजल ..सादर !!!
bahut sunder.
जवाब देंहटाएंयूँ अचानक तल्खियाँ रिश्तों में क्यूं
जवाब देंहटाएंअब किसी ने फिर ज़हर घोला तो है
बहुत बढ़िया....