ग़ज़ल
इन दिनों मेरे घर नहीं आती
कोई अच्छी खबर नहीं आती
शहर के सब हसीन चेहरों पर
ज़िन्दगी क्यूँ नज़र नहीं आती
वो सुनाता है दास्तां अपनी
आँख जबतक कि भर नहीं आती
सौंधी सौंधी है गाँव की मिट्टी
उसकी खुशबू शहर नहीं आती
प्यार से सिर्फ देखती है मुझे
मैं बुलाता हूँ पर नहीं आती
कब के मर जाते याद जो तेरी
हौले हौले से गर नहीं आती
वो "मुसाफ़िर" जहां पे रहता है
ज़िन्दगी भी उधर नहीं आती
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
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