बुधवार, मार्च 31, 2010

ग़ज़ल 1
वो यकीनन दर्द अपने पी गया
जो परिंदा प्यासा रहके जी गया

झांकता था जब बदन मिलती थी भीख
क्यूँ मेरा दामन कोई कर सी गया

उसमें गहराई समंदर की कहाँ
जो मुझे दरिया समझकर पी गया

चहचहाकर सारे पंछी उड़ गए
वार जब सैयाद का खाली गया

लौटकर बस्ती में फिर आया नहीं
बनके लीडर जब से वो दिल्ली गया

टूटकर बिखरी मेरी सारी हदें
सर से आखिर जब मेरे पानी गया

कोई रहबर है, न है मंजिल कोई
अब मुसाफ़िर लौटकर आ ही गया.

ग़ज़ल 2
भूल गया है,खुशियों की मुस्कान शहर
पत्थर जैसे चेहरों की पहचान शहर

बाशिंदे भी अब तक न पहचान सके
जिंदा भी है या कि है बेजान शहर

सोचले भाई जाने से पहले ये बात
लूट चुका है लाखों के अरमान शहर

जिंदा है गावों में अब तक सच्चाई
दो और दो का पांच करे मीज़ान शहर

बदलेंगी दुनिया की सोचें बदलेंगी
बदलेगा गर अपने कुछ इमकान शहर

उसकी नज़रों में जो मुसाफ़िर शाइर है
बस ख्वाबों की दुनिया का उन्वान शहर

Musafir
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हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों का ध्यान देश की वर्तमान स्थितियों पर न होकर कुछ ऐसे कारणों पर ज़रूर जाता है,जिनको तूल देने की कहीं कोई आवश्यकता नहीं होती. पाक अधिकृत कश्मीर में 34 आतंकवादी दस्ते प्रशिक्षण ले रहे हैं, जनता महंगाई से बेज़ार है, ख़ुफ़िया तंत्र हरेक प्रकरण में अपनी पंगुता स्वयं प्रस्तुत कर रहा है, नोटों के हार की मालाएं राजनीतिक प्रतिस्पर्धा एवं वैभव का प्रतीक बन गयी हैं, होने दीजिये . इन्हें तकलीफ है की अमिताभ बच्चन "बांद्रा-वर्ली सी लिंक " के उदघाटन समारोह में क्यूँ गए, या वे नरेन्द्र मोदी से क्यूँ मिलते हैं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का एक दिन पहले ही मराठी समाज के पुणे स्थित कार्यक्रम में जाना तो यही परिलक्षित करता है कि श्री बच्चन कोई अछूत व्यक्ति हैं, और उन्हें छूने भर से कोई ऐसी बीमारी होने का अंदेशा हो जो कि लाइलाज हो. ये वही अमिताभ बच्चन हैं जिनकी स्वर्गीय मां श्रीमती तेजी बच्चन ने श्रीमती सोनिया गाँधी को भारतीय संस्कृति व परिधानों की महत्ता बताई. आज उन्ही सोनिया जी की पार्टी अमिताभ बच्चन के पीछे पड़ गई है, अमिताभ बच्चन इस देश के गौरव हैं. यहाँ उनका सम्मान होने के बजाय रोज़ ही राजनीतिक रोटियां सेंकने वाली कांग्रेस /भाजपा /सपा /बसपा /मनसे एवं शिवसेना उनका नाम घसीट कर स्वयं की पब्लिसिटी करने में व्यस्त हैं.
सभी पार्टियों को एक नेक सलाह है कि वे सभी अमिताभ बच्चन के दफ्तर में एक एक अफसर की नियुक्ति कर दें और उनके द्वारा आयोजित बैठक में ही यह निर्णय लिया जाये कि श्री अमिताभ बच्चन किस कार्यक्रम में जाएँ और किस कार्यक्रम में नहीं. देश का क्या है वो तो वैसे ही भगवान् भरोसे चल रहा है.

विलास पंडित