दुश्मनों से दिल मिलाना सीखिए
वरना ये तन्हाई तो डस जायेगी
घर किसी के आना जाना सीखिए
झोलियाँ खुशियों से भरना आ गईं
बोझ ग़म का भी उठाना सीखिए
है बहोत आसां ज़माने का चलन
ख़ुद सिखाता है ज़माना सीखिए
वस्ल क्या है, प्यार क्या सिखलाऊंगा
आप थोड़ा पास आना सीखिए
होगी दुनिया आपके कदमों तले
बस ज़रा ये सर झुकाना सीखिए
विलास पंडित "मुसाफ़िर"
(C) Copyright by : Musafir