यूँ न आते ज़मी पे तारे भी
दिल में कुछ कुछ तो है तुम्हारे भी
जिनको कहते हैं मुहब्बत में खुतूत
कुछ तुम्हारे हैं, कुछ हमारे भी
दिल तो बस इतनी चाहता है वफ़ा
कोई दिल से हमें पुकारे भी
बेवजह बात पर किसी लड़ना
हो तो सकते हैं ये इशारे भी
आपके साथ साथ रह रह कर
कितने मगरूर हैं नज़ारे भी
मेरे नग्मे तुम्हारे नाम हुए
छीन गए मुझसे ये सहारे भी
राहबर हूँ, नहीं हूँ मैं रहज़न
सारे जेवर ये क्यूँ उतारे भी
तिशना -लब हो ये जनता हूँ मगर
हैं "मुसाफिर" के अश्क खारे भी