बुधवार, मार्च 02, 2011


क्या है मेरे नसीब में सचमुच ख़बर नहीं 
जब है तेरा वजूद तो मुझको भी डर नहीं 

तूफां के डर से कांपता होगा ये समंदर 
दरिया पे ऐसे खौफ़ का कोई असर नहीं 

अपना बना के आपसे करता रहा फरेब 
क्यूँ कर हुज़ूर आपकी उस पर नज़र नहीं 

खाना-बदोश हूँ, मेरा अंदाज़ है अलग 
रहता हूँ जिस जगह वहां दीवारों-दर नहीं 

खाता है खौफ़ आस्मां जिसकी उड़ान से 
देखो वो इक परिंदा अब शाख पर नहीं 

बेवजह उसकी आप भी क्यूं जुस्तजू में हैं 
वो तो  है इक " मुसाफ़िर"वो हमसफ़र नहीं 

विलास पंडित  " मुसाफ़िर'

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